आज जब हम तकनीकी युग की ऊँचाइयों को छू रहे हैं, तब हमें यह भी समझना होगा कि इस प्रगति की एक भारी कीमत हमारी पृथ्वी चुका रही है। डिजिटल प्रदूषण और ई-कचरा (E-Waste) आज के युग की गंभीर और अपेक्षाकृत अनदेखी समस्याएं हैं। मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बढ़ते उपयोग ने एक नया प्रकार का प्रदूषण जन्म दिया है, जिसे हम रोज़मर्रा की आँखों से नहीं देख पाते, पर इसका दुष्प्रभाव हमारे जल, वायु और मिट्टी पर गहराई से पड़ता है।
प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्रकृति को देवतुल्य माना गया है — जल, जमीन, वायु को पूजनीय तत्व माना गया है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली ने इन सभी प्राकृतिक तत्वों को संकट की ओर धकेल दिया है। जल स्रोतों का क्षरण, भूमि का अतिक्रमण, वायु की विषाक्तता और ऊर्जा संसाधनों का अत्यधिक दोहन — ये सभी आज मानवता के समक्ष एक विकराल चुनौती बनकर खड़े हैं।
समस्या जितनी बड़ी है, समाधान उतने ही सरल हैं — यदि हम सामूहिक चेतना और व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी को आत्मसात करें। ई-कचरे का सही प्रबंधन, डिजिटल उपकरणों का सीमित और विवेकपूर्ण उपयोग, ऊर्जा की बचत हेतु LED और सौर ऊर्जा का प्रयोग, जल का संचयन और संरक्षण, वृक्षारोपण और जैव विविधता का संरक्षण — इन सभी उपायों को यदि हम जीवनशैली का हिस्सा बना लें, तो हम आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित धरती सौंप सकते हैं।
पर्यावरण संरक्षण कोई विकल्प नहीं, बल्कि हमारी ज़िम्मेदारी है। इसमें शिक्षण संस्थानों, छात्रों, शिक्षकों और समाज के हर वर्ग की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
मैं पंजाब की पर्यावरण संरक्षण गतिविधि को इस जागरूकता प्रयास के लिए साधुवाद देता हूँ, और आशा करता हूँ कि यह आंदोलन आने वाले वर्षों में एक जनचेतना का रूप लेगा।
“विकास तब तक ही सार्थक है, जब तक वह प्रकृति से सामंजस्य बनाए रखे।”

डॉ. विजय अरोड़ा
कुलपति, चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा (हरियाणा)